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५५. अपने सम्प्रदाय के साथ ही अन्य सम्प्रदायों का ज्ञान भी देना चाहिये तथा धर्म कया है और अपना सम्प्रदाय उस धर्म का ही अंग कैसे है यह खास सिखाना चाहिये । इस दृष्टि से सारे सम्प्रदाय हिन्दु धर्म के ही अंग हैं ऐसा कहने में धर्माचार्यों को संकोच नहीं करना चाहिये । हिन्दू धर्म को ही भारत में “मानव धर्म' अथवा “धर्म' कहा गया है और वह सनातन है ऐसा प्रतिपादन भी बार बार किया गया है । यदि कुछ सम्प्रदायों को 'हिन्दु धर्म' ऐसी संज्ञा स्वीकार्य न हो तो बिना किसी विशेषण के केवल “धर्म' संज्ञा का प्रयोग कर अपने सम्प्रदाय को उस धर्म के प्रकाश में व्याख्यायित करना चाहिये |
 
५५. अपने सम्प्रदाय के साथ ही अन्य सम्प्रदायों का ज्ञान भी देना चाहिये तथा धर्म कया है और अपना सम्प्रदाय उस धर्म का ही अंग कैसे है यह खास सिखाना चाहिये । इस दृष्टि से सारे सम्प्रदाय हिन्दु धर्म के ही अंग हैं ऐसा कहने में धर्माचार्यों को संकोच नहीं करना चाहिये । हिन्दू धर्म को ही भारत में “मानव धर्म' अथवा “धर्म' कहा गया है और वह सनातन है ऐसा प्रतिपादन भी बार बार किया गया है । यदि कुछ सम्प्रदायों को 'हिन्दु धर्म' ऐसी संज्ञा स्वीकार्य न हो तो बिना किसी विशेषण के केवल “धर्म' संज्ञा का प्रयोग कर अपने सम्प्रदाय को उस धर्म के प्रकाश में व्याख्यायित करना चाहिये |
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५६. भारत में यदि सर्वाधिक विट्रेष है तो वह इस्लाम और इसाई पंथ तथा हिन्दु धर्म के बीच है । इसका मूल कारण मानस में ही पडा है। ये दोनों पंथ सहअस्तित्व को स्वीकार नहीं करते हैं । इस्लाम कहता है कि जो मुसलमान नहीं वह नापाक अर्थात्‌ अपवित्र है, उसे मुसलमान बनकर पाक बनना चाहिये, उसे पाक बनाना सच्चे मुसलमान का पवित्र कर्तव्य है और कोई यदि मुसलमान बनकर पाक बनना नहीं चाहता है और नापाक ही रहना चाहता है तो उसे जीवित नहीं रहने देने से मुसलमान को जन्नत अर्थात्‌ स्वर्ग मिलता है । अर्थात्‌ सम्पूर्ण विश्व में मुसलमान को ही जीवित रहने का अधिकार है ।
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५६. भारत में यदि सर्वाधिक विट्रेष है तो वह इस्लाम और इसाई पंथ तथा हिन्दु धर्म के मध्य है । इसका मूल कारण मानस में ही पडा है। ये दोनों पंथ सहअस्तित्व को स्वीकार नहीं करते हैं । इस्लाम कहता है कि जो मुसलमान नहीं वह नापाक अर्थात्‌ अपवित्र है, उसे मुसलमान बनकर पाक बनना चाहिये, उसे पाक बनाना सच्चे मुसलमान का पवित्र कर्तव्य है और कोई यदि मुसलमान बनकर पाक बनना नहीं चाहता है और नापाक ही रहना चाहता है तो उसे जीवित नहीं रहने देने से मुसलमान को जन्नत अर्थात्‌ स्वर्ग मिलता है । अर्थात्‌ सम्पूर्ण विश्व में मुसलमान को ही जीवित रहने का अधिकार है ।
    
५७. इसी प्रकार से इसाई मानता है कि जो इसाई नहीं उसे मुक्ति नहीं मिलती है । इस सम्पूर्ण पृथ्वी पर ईसु का ही अधिकार है और वही एक मात्र ईश्वर का पयगंबर है। इसलिये सम्पूर्ण विश्व को इसाई बन जाना चाहिये ।
 
५७. इसी प्रकार से इसाई मानता है कि जो इसाई नहीं उसे मुक्ति नहीं मिलती है । इस सम्पूर्ण पृथ्वी पर ईसु का ही अधिकार है और वही एक मात्र ईश्वर का पयगंबर है। इसलिये सम्पूर्ण विश्व को इसाई बन जाना चाहिये ।
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५८. इस कारण से दोनों पंथ धर्मान्‍्तरण करने पर तुले रहते हैं, धर्म के नाम पर युद्ध करते हैं, युद्ध के माध्यम से हिंसा फैलाते हैं । एक आतंक फैलाकर और दूसरा भय, लालच और कपट फैलाकर धर्मान्‍्तरण करते हैं ।
 
५८. इस कारण से दोनों पंथ धर्मान्‍्तरण करने पर तुले रहते हैं, धर्म के नाम पर युद्ध करते हैं, युद्ध के माध्यम से हिंसा फैलाते हैं । एक आतंक फैलाकर और दूसरा भय, लालच और कपट फैलाकर धर्मान्‍्तरण करते हैं ।
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५९. भारत हिन्दू राष्ट्र है परन्तु इसे हिन्दू राष्ट्र कहने में अनेक तबकों को आपत्ति है । धर्म और सम्प्रदाय के बीच का अन्तर बुद्धि से स्पष्ट समझ में आने वाला है तो भी मानसिक उलझनों के कारण उलझाया जाता है और अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के विवाद में फैँसाकर देश को ही अस्थिर बनाया जा रहा है ।
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५९. भारत हिन्दू राष्ट्र है परन्तु इसे हिन्दू राष्ट्र कहने में अनेक तबकों को आपत्ति है । धर्म और सम्प्रदाय के मध्य का अन्तर बुद्धि से स्पष्ट समझ में आने वाला है तो भी मानसिक उलझनों के कारण उलझाया जाता है और अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के विवाद में फैँसाकर देश को ही अस्थिर बनाया जा रहा है ।
    
६०. परन्तु सभी के सहअस्तित्व का स्वीकार करने वाला हिन्दू और सहअस्तित्व को सर्वथा अमान्य करने वाले इस्लाम और इसाइयत साथ साथ कैसे रह सकते हैं इस प्रश्न का हल खोजे बिना यह समरसता होने वाली नहीं है । सरकार अल्पसंख्यकों के अधिकार के नाम पर हल निकालने का प्रयास करती है परन्तु उससे हल निकलना तो असम्भव है । मुसलमान और इसाई इसका हल खोजेंगे नहीं क्योंकि उन्हें सहअस्तित्व मान्य नहीं है । जिन्हें सहअस्तित्व मान्य नहीं है उनके साथ रहने की हिन्दू की सांविधानिक बाध्यता है । इन परस्पर विरोधी लोगों का साथ रहना जिसे मान्य नहीं है उसके हिसाब से तो धर्मान्‍्तरण और गैर मुसलमान को मारना यही उपाय है । परन्तु जो सहअस्तित्व में मानता है उस हिन्दू के पास कौन सा उपाय है ?
 
६०. परन्तु सभी के सहअस्तित्व का स्वीकार करने वाला हिन्दू और सहअस्तित्व को सर्वथा अमान्य करने वाले इस्लाम और इसाइयत साथ साथ कैसे रह सकते हैं इस प्रश्न का हल खोजे बिना यह समरसता होने वाली नहीं है । सरकार अल्पसंख्यकों के अधिकार के नाम पर हल निकालने का प्रयास करती है परन्तु उससे हल निकलना तो असम्भव है । मुसलमान और इसाई इसका हल खोजेंगे नहीं क्योंकि उन्हें सहअस्तित्व मान्य नहीं है । जिन्हें सहअस्तित्व मान्य नहीं है उनके साथ रहने की हिन्दू की सांविधानिक बाध्यता है । इन परस्पर विरोधी लोगों का साथ रहना जिसे मान्य नहीं है उसके हिसाब से तो धर्मान्‍्तरण और गैर मुसलमान को मारना यही उपाय है । परन्तु जो सहअस्तित्व में मानता है उस हिन्दू के पास कौन सा उपाय है ?

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