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धर्म और शिक्षा का सम्बन्ध साध्य और साधन जैसा है। धर्म के बारे में हमने अनेक बार चर्चा की ही है वह
 
धर्म और शिक्षा का सम्बन्ध साध्य और साधन जैसा है। धर्म के बारे में हमने अनेक बार चर्चा की ही है वह
एक विश्वनियम है जिससे व्यक्ति से लेकर सृष्टि तक सबकी धारणा होती है । इन नियमों के अनुसार जब सम्टिजीवन
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एक विश्वनियम है जिससे व्यक्ति से लेकर सृष्टि तक सबकी धारणा होती है । इन नियमों के अनुसार जब सम्टिजीवन का व्यवहार चलता है तब धर्म संस्कृति का रूप धारण करता है । इस व्यवहार और संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढी तक पहुँचाने की जो व्यवस्था है वह शिक्षा है । तात्पर्य यही है कि धर्म, धर्म का व्यवहार और धर्म का हस्तान्तरण एकदूसरे के साथ अविनाभाव सम्बन्ध से जुडे हैं। धर्माचार्य धर्म को जानता है, उसे व्यवहार्य बनाता है, देशकाल परिस्थिति के अनुसार उसमें परिष्कार करता है, समष्टिनियमों का सृष्टिनियमों के साथ समायोजन करता है । धर्माचार्य धर्म कहता है । धर्माचार्य जो कहता है उसे लोगों तक पहुँचाने का कार्य शिक्षा का है ।
का व्यवहार चलता है तब धर्म संस्कृति का रूप धारण
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करता है । इस व्यवहार और संस्कृति को एक पीढ़ी से
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दूसरी पीढी तक पहुँचाने की जो व्यवस्था है वह शिक्षा है ।
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तात्पर्य यही है कि धर्म, धर्म का व्यवहार और धर्म का
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हस्तान्तरण एकदूसरे के साथ अविनाभाव सम्बन्ध से जुडे
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हैं। धर्माचार्य धर्म को जानता है, उसे व्यवहार्य बनाता है,
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देशकाल परिस्थिति के अनुसार उसमें परिष्कार करता है,
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समष्टिनियमों का सृष्टिनियमों के साथ समायोजन करता है ।
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धर्माचार्य धर्म कहता है । धर्माचार्य जो कहता है उसे लोगों
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तक पहुँचाने का कार्य शिक्षा का है ।
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यदि भारतीय समाज धर्मनिष्ठ है और वह अर्थनिष्ठ बन
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यदि भारतीय समाज धर्मनिष्ठ है और वह अर्थनिष्ठ बन गया है तो उसे पुनः धर्मनिष्ठ बनाने में धर्माचार्य की भूमिका महत्त्वपूर्ण है । उसके बिना धर्म की प्रतिष्ठा नहीं होगी और भारत भारत नहीं होगा ।
गया है तो उसे पुनः धर्मनिष्ठ बनाने में धर्माचार्य की भूमिका
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महत्त्वपूर्ण है । उसके बिना धर्म की प्रतिष्ठा नहीं होगी और
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भारत भारत नहीं होगा ।
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धर्माचार्य किसे कहेंगे ?
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==== धर्माचार्य किसे कहेंगे ? ====
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धर्माचार्य कौन है ? जो विशिष्ट प्रकार के तिलक, माला, केश, वेश धारण करता है वह धर्माचार्य नहीं है । जो किसी एक सम्प्रदाय का प्रवर्तक या गादीपति है वही धर्माचार्य नहीं है । जिसने संन्यास की दीक्षा ली है वही धर्माचार्य नहीं है । जटा, शिखा आदि रखता है वही  धर्माचार्य नहीं है । ये सबके सब सम्प्रदाय के चिक्नविशेष हैं । सम्प्रदाय धर्म का एक अंग अवश्य हैं परन्तु समग्रता में धर्म नहीं हैं ।
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धर्माचार्य कौन है ? जो विशिष्ट प्रकार के तिलक,
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धर्माचार्य पूर्व में कहे अनुसार वह है जो धर्म को जानता है, धर्मशास्त्र की रचना करता है और उसे बताता है। हम कह सकते हैं कि धर्माचार्य धर्म के शासन में शासक है । शिक्षाचार्य उसके अमात्य हैं । शिक्षा धर्म का अनुसरण करती है । अतः धर्माचार्य और शिक्षक एकदूसरे के पूरक हैं
माला, केश, वेश धारण करता है वह धर्माचार्य नहीं है ।
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जो किसी एक सम्प्रदाय का प्रवर्तक या गादीपति है वही
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धर्माचार्य नहीं है । जिसने संन्यास की दीक्षा ली है वही
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धर्माचार्य नहीं है जटा, शिखा आदि रखता है वही
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धर्माचार्य और शिक्षक एकदूसरे का स्थान ले सकते है। हम यह भी कह सकते हैं कि शिक्षाक्षेत्र का सर्वोच्च
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पद धर्माचार्य का ही होगा । हम धर्म और शिक्षा को अलग कर ही नहीं सकते ।
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धर्माचार्य नहीं है । ये सबके सब सम्प्रदाय के चिक्नविशेष
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आज हम क्या करें ?
हैं । सम्प्रदाय धर्म का एक अंग अवश्य हैं परन्तु समग्रता में
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धर्म नहीं हैं ।
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ental, Yt में कहे अनुसार वह है जो धर्म को
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भारत को यदि धर्मनिष्ठ बनाना है तो हमें धर्माचार्यों की आवश्यकता है । वर्तमान में जो धर्माचार्य के नाम से अपने आपको प्रस्तुत करते हैं उन्हें अपनी भूमिका को अधिक व्यापक बनाने की आवश्यकता है । उदाहरण के
जानता है, धर्मशास्त्र की रचना करता है और उसे बताता
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लिये. वर्तमान में  धर्मक्षेत्र आचरण, पूजा, भक्ति, अध्यात्मचर्चा, योग आदि में सीमित बन गया है । अर्थक्षेत्र, राजनीति का क्षेत्र, शिक्षा क्षेत्र आदि व्यष्टि जीवन और समश्टिजीवन का नियमन करने वाले महत्त्वपूर्ण क्षेत्र धर्म के दायरे से बाहर रह गये हैं । दिखाई तो यह देता है कि ये सारी व्यवस्थायें आज के धर्मक्षेत्र को भी नियन्त्रित कर रही हैं। अथवा कहें कि उन्होंने इन व्यवस्थाओं के साथ अनुकूलन बना लिया है। उदाहरण के लिये अनेक धर्माचार्यों के, मठों के, मन्दिरों के आश्रय में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय चलते हैं, देश से बाहर के शिक्षा बोर्ड के साथ संलग्न भी होते हैं, प्लास्टीक का भरपूर प्रयोग वहाँ होता है और सरकारी नियमों से ही वहाँ शिक्षा होती है । इन विद्यालयों में धर्म सिखाने वाली शिक्षा नहीं होती धर्माचार्यों के प्रश्नय में निःशुल्क शिक्षा भी चलती है परन्तु वह धर्मादाय है, शिक्षा का सम्मान नहीं है । अर्थक्षेत्र को नियमन में लाना वर्तमान धर्मक्षेत्र के दायरे से बाहर ही रह गया है जबकि भारत की प्रथम आवश्यकता अर्थक्षेत्र के नियमन की है
है। हम कह सकते हैं कि धर्माचार्य धर्म के शासन में
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शासक है । शिक्षाचार्य उसके अमात्य हैं । शिक्षा धर्म का
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अनुसरण करती है । अतः धर्माचार्य और शिक्षक एकदूसरे
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के पूरक हैं
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धर्माचार्य और शिक्षक एकदूसरे का स्थान ले सकते
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धर्म जीवनव्यापी है, सृष्टिव्यापी है। आज उसे संकुचित बना दिया गया है । धर्म को सर्वव्यापक बनाने की
है। हम यह भी कह सकते हैं कि शिक्षाक्षेत्र का सर्वोच्च
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प्रथम आवश्यकता है । उसे ऐसा बनाने वाले धर्माचार्य की आवश्यकता है
पद धर्माचार्य का ही होगा हम धर्म और शिक्षा को अलग
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कर ही नहीं सकते
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आज हम क्या करें ?
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ऐसे धर्माचार्य कैसे प्राप्त होंगे ?
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भारत को यदि धर्मनिष्ठ बनाना है तो हमें धर्माचार्यों
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ऐसे धर्माचार्य बनने के लिये व्यक्ति को और ऐसे धर्माचार्य प्राप्त करने के लिये समाज को तप करने की अनिवार्य आवश्यकता है । कोई भी श्रेष्ठ बात तपश्चर्या के बिना प्राप्त नहीं होता
की आवश्यकता है । वर्तमान में जो धर्माचार्य के नाम से
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अपने आपको प्रस्तुत करते हैं उन्हें अपनी भूमिका को
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अधिक व्यापक बनाने की आवश्यकता है । उदाहरण के
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लिये. वर्तमान में  धर्मक्षेत्र आचरण, पूजा, भक्ति,
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अध्यात्मचर्चा, योग आदि में सीमित बन गया है । अर्थक्षेत्र,
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राजनीति का क्षेत्र, शिक्षा क्षेत्र आदि व्यष्टि जीवन और
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समश्टिजीवन का नियमन करने वाले महत्त्वपूर्ण क्षेत्र धर्म के
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दायरे से बाहर रह गये हैं दिखाई तो यह देता है कि ये
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सारी व्यवस्थायें आज के धर्मक्षेत्र को भी नियन्त्रित कर रही
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हैं। अथवा कहें कि उन्होंने इन व्यवस्थाओं के साथ
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अनुकूलन बना लिया है। उदाहरण के लिये अनेक
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धर्माचार्यों के, मठों के, मन्दिरों के आश्रय में अंग्रेजी माध्यम
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के विद्यालय चलते हैं, देश से बाहर के शिक्षा बोर्ड के साथ
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==== तप के उदाहरण ====
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तप कहते ही हमारे सामने अनेक प्राचीन उदाहरण आते हैं ।
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राजा भगीरथने गंगा नदी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिये तप किया |
     −
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बालक ध्रुव ने अपने पिता का स्नेह प्राप्त करने के
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लिये तप किया |
८ ४
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प्रयोग वहाँ होता है और सरकारी नियमों से ही वहाँ शिक्षा
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अर्जुनने पाशुपतास्त्र  प्राप्त करने के लिये तप किया |
होती है । इन विद्यालयों में धर्म सिखाने वाली शिक्षा नहीं
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होती । धर्माचार्यों के प्रश्नय में निःशुल्क शिक्षा भी चलती है
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परन्तु वह धर्मादाय है, शिक्षा का सम्मान नहीं है । अर्थक्षेत्र
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को नियमन में लाना वर्तमान धर्मक्षेत्र के दायरे से बाहर ही
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रह गया है जबकि भारत की प्रथम आवश्यकता अर्थक्षेत्र के
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नियमन की है ।
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धर्म जीवनव्यापी है, सृष्टिव्यापी है। आज उसे
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पार्वती ने शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने हेतु तप किया
संकुचित बना दिया गया है । धर्म को सर्वव्यापक बनाने की
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प्रथम आवश्यकता है । उसे ऐसा बनाने वाले धर्माचार्य की
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आवश्यकता है
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ऐसे धर्माचार्य कैसे प्राप्त होंगे ?
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ऐसे धर्माचार्य बनने के लिये व्यक्ति को और ऐसे
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अनेक ऋ्रषिमुनि अपने संकल्प की सिद्धि हेतु तप करते हैं
धर्माचार्य प्राप्त करने के लिये समाज को तप करने की
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अनिवार्य आवश्यकता है । कोई भी श्रेष्ठ बात तपश्चर्या के
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बिना प्राप्त नहीं होता
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तप के उदाहरण
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भूगु ने अपने पिता से ब्रह्म क्या है ऐसा पूछा तब पिताने कहा कि तप करो और ब्रह्म को जानो ।
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तप कहते ही हमारे सामने अनेक प्राचीन उदाहरण
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आते हैं ।
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राजा भगीरथने गंगा नदी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने
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के लिये तप किया |
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बालक Ya ने अपने पिता का स्नेह प्राप्त करने के
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लिये तप किया |
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अर्जुनने पाशुपताख््र प्राप्त करने के लिये तप किया |
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पार्वती ने शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने हेतु
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तप किया ।
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अनेक ऋ्रषिमुनि अपने संकल्प की सिद्धि हेतु तप
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करते हैं ।
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भूगु ने अपने पिता से ब्रह्म क्या है ऐसा पूछा तब
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पिताने कहा कि तप करो और ब्रह्म को जानो ।
   
विश्वामित्र ने तप किया और राजर्षि से ब्रह्मार्षि है ।
 
विश्वामित्र ने तप किया और राजर्षि से ब्रह्मार्षि है ।
तात्पर्य यह है कि ऐसा कोई काम नहीं है जो तप से
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सिद्ध नही होता, और ऐसा कोई श्रेष्ठ काम नहीं है जो बिना
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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तप के सिद्ध हो जाता है ।
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तात्पर्य यह है कि ऐसा कोई काम नहीं है जो तप से सिद्ध नही होता, और ऐसा कोई श्रेष्ठ काम नहीं है जो बिना तप के सिद्ध हो जाता है ।
    
तप कहते ही हमारे सामने बालक श्रुव अरप्य में
 
तप कहते ही हमारे सामने बालक श्रुव अरप्य में
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पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
 
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
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के लिये लडाई करता है उसके भाग्य में समर्थ
 
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
 
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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जा सकते हैं ? यदि यही भारतीय
 
जा सकते हैं ? यदि यही भारतीय
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
 
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कृतज्ञता से व्यवहार करता है ।
 
कृतज्ञता से व्यवहार करता है ।
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मुफ्त में मिलनेवाली वस्तु का कोई
 
मुफ्त में मिलनेवाली वस्तु का कोई
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
 
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वाला सीखने वाले को, बडा छोटे को, सत्ताधीश सत्ताधीन
 
वाला सीखने वाले को, बडा छोटे को, सत्ताधीश सत्ताधीन
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हजार अध्यापकों की ज्ञानशक्ति कार्य का
 
हजार अध्यापकों की ज्ञानशक्ति कार्य का
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शाख्रग्रन्थों का अध्ययन करना पहला
 
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क्षमता, आयु के लोगों के लिये
 
क्षमता, आयु के लोगों के लिये
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अध्ययन तथा faa की. वर्तमान
 
अध्ययन तथा faa की. वर्तमान
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
 
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
 
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परिषर्दे होंगी जिनका संचालन महाजन करेंगे । इनमें
 
परिषर्दे होंगी जिनका संचालन महाजन करेंगे । इनमें
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पर्व ५
 
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प्रारम्भ करें ।
 
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