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११. गृहविद्यापीठ की रचना भी होनी चाहिये ।
 
११. गृहविद्यापीठ की रचना भी होनी चाहिये ।
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सामाजिकता की पर्यायोगिक शिक्षा
    
किसी भी हालत में यह विषय सरकारी मान्यता,
 
किसी भी हालत में यह विषय सरकारी मान्यता,
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8.
 
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सामाजिकता की प्रायोगिक शिक्षा
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=== सामाजिकता की प्रायोगिक शिक्षा ===
 
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सामाजिकता क्या है ?
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==== सामाजिकता क्या है ? ====
 
मनुष्य समाज में रहता है । समाज मनुष्य का ही होता
 
मनुष्य समाज में रहता है । समाज मनुष्य का ही होता
 
है । मनुष्य के अलावा अन्य प्राणियों का तो केवल समूह
 
है । मनुष्य के अलावा अन्य प्राणियों का तो केवल समूह
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विकास करने हेतु सावधानीपूर्वक अनेक प्रकार से योजना
 
विकास करने हेतु सावधानीपूर्वक अनेक प्रकार से योजना
 
करनी चाहिये ।
 
करनी चाहिये ।
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पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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१, देना और बॉाँट कर उपभोग करना
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==== १, देना और बॉाँट कर उपभोग करना ====
 
शिशु और प्रारम्भिक बाल अवस्था में इन गुणों के
 
शिशु और प्रारम्भिक बाल अवस्था में इन गुणों के
 
संस्कार होना आवश्यक है। इस दृष्टि से गीत, खेल,
 
संस्कार होना आवश्यक है। इस दृष्टि से गीत, खेल,
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चलाने के कार्यों में विकसित होते हैं ।
 
चलाने के कार्यों में विकसित होते हैं ।
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२. सत्कारपूर्वक देना
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==== २. सत्कारपूर्वक देना ====
 
   
दूसरों को देते समय मेरे से अधिक और मेरे से अच्छी
 
दूसरों को देते समय मेरे से अधिक और मेरे से अच्छी
 
वस्तु देना ही प्रेम और सम्मान का लक्षण है । मेरे पास दो
 
वस्तु देना ही प्रेम और सम्मान का लक्षण है । मेरे पास दो
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से अधिक देने की और देकर खुश होने की वृत्ति का
 
से अधिक देने की और देकर खुश होने की वृत्ति का
 
विकास करना चाहिये ।
 
विकास करना चाहिये ।
३. भेदों को नहीं मानना
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==== ३. भेदों को नहीं मानना ====
 
सबका स्वीकार करना असंस्कृत समाज धन, बल,
 
सबका स्वीकार करना असंस्कृत समाज धन, बल,
सत्ता, वर्ण, जाति आदि के भेदों से एकदूसरे को ऊँचा और
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सत्ता, वर्ण, जाति आदि के भेदों से एकदूसरे को ऊँचा और नीचा मानने की प्रवृत्ति रखता है।
 
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सुसंस्कृत समाज इन भेदों से ऊपर उठता है । भेदों से ऊपर उठना विशेष आग्रहपूर्वक सिखाना चाहिये ।
श्०९
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नीचा मानने की प्रवृत्ति रखता है।
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सुसंस्कृत समाज इन भेदों से ऊपर उठता है । भेदों से ऊपर
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उठना विशेष आग्रहपूर्वक सिखाना चाहिये ।
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इस दृष्टि से गटव्यवस्था बहुत प्रभावी साधन बन
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सकती है । गटों की रचना में इन बातों का समावेश करना
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चाहिये :
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०"... गट के सभी विद्यार्थियों ने साथ बैठकर स्वाध्याय
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करना । इस दृष्टि से प्रतिदिन कुछ समय रखना
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चाहिये ।
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स्वाध्याय में एकदूसरे की सहायता करना ।
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एकदूसरे का पूर्ण परिचय प्राप्त करना ।
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एकदूसरे के घर जाने का अवसर निर्माण करना ।
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एक गट के विद्यार्थियों के परिवारों में भी परिचय और
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आत्मीयता बढ़ाना ।
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इन गटों की रचना में अमीर गरीब, ऊँच नीच, जाति
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पाँति का भेद गल जाय ऐसी रचना करना |
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इस दृष्टि से विद्यालयीन व्यवहार में गुणों का सम्मान
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करने का प्रचलन बनाना चाहिये, धन, सत्ता या
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वर्णजाति की उच्चता का नहीं । इन आधारों पर
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विद्यालय से बाहर के जीवन में भी मित्रता विकसित
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हो सके यह देखना चाहिये ।
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४. कृतज्ञता और उदारता
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इस दृष्टि से गटव्यवस्था बहुत प्रभावी साधन बन सकती है । गटों की रचना में इन बातों का समावेश करना चाहिये
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* गट के सभी विद्यार्थियों ने साथ बैठकर स्वाध्याय करना । इस दृष्टि से प्रतिदिन कुछ समय रखना चाहिये
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* स्वाध्याय में एकदूसरे की सहायता करना ।
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* एकदूसरे का पूर्ण परिचय प्राप्त करना ।
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* एकदूसरे के घर जाने का अवसर निर्माण करना ।
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* एक गट के विद्यार्थियों के परिवारों में भी परिचय और आत्मीयता बढ़ाना ।
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* इन गटों की रचना में अमीर गरीब, ऊँच नीच, जाति पाँति का भेद गल जाय ऐसी रचना करना |
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* इस दृष्टि से विद्यालयीन व्यवहार में गुणों का सम्मान करने का प्रचलन बनाना चाहिये, धन, सत्ता या वर्णजाति की उच्चता का नहीं । इन आधारों पर विद्यालय से बाहर के जीवन में भी मित्रता विकसित हो सके यह देखना चाहिये ।
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कहीं भी किसी से कुछ सहायता प्राप्त हुई तो कृतज्ञता
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==== ४. कृतज्ञता और उदारता ====
का अनुभव करना चाहिये । आजकल कृतज्ञता बहुत कृत्रिम
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कहीं भी किसी से कुछ सहायता प्राप्त हुई तो कृतज्ञता का अनुभव करना चाहिये । आजकल कृतज्ञता बहुत कृत्रिम उपचार का विषय बन गई है । बात बात में थैन्क्यू, प्लीज
उपचार का विषय बन गई है । बात बात में थैन्क्यू, प्लीज
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और सॉरी कहने की प्रथा बन गई है । किसी बच्चे को खिडकी बन्द करने को कहा और उसने वह काम किया तो थैन्क्यू, होटेल में बैरेने पानी लाकर दिया तो थैन्क्यू, पिताजी
और सॉरी कहने की प्रथा बन गई है । किसी बच्चे को
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ने खिलौना लाकर दिया तो थैन्क्यू । बात बात में थैन्क्यू कहना सिखाते हैं । इसी प्रकार से विद्यार्थी को ग्रन्थालय से कुछ लाने को कहना है तो प्लीज, प्रश्न का उत्तर देने को कहना है तो प्लीज, खडे होकर पास आने के लिये कहना है तो प्लीज । मुखर होकर सर्वत्र इन शब्दों का उच्चारण करने से वह अभिव्यक्ति सतही रह जाती है, केवल उपचार
खिडकी बन्द करने को कहा और उसने वह काम किया तो
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थैन्क्यू, होटेल में बैरेने पानी लाकर दिया तो थैन्क्यू, पिताजी
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ने खिलौना लाकर दिया तो थैन्क्यू । बात बात में थैन्क्यू
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कहना सिखाते हैं । इसी प्रकार से विद्यार्थी को ग्रन्थालय से
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कुछ लाने को कहना है तो प्लीज, प्रश्न का उत्तर देने को
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कहना है तो प्लीज, खडे होकर पास आने के लिये कहना
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है तो प्लीज । मुखर होकर सर्वत्र इन शब्दों का उच्चारण
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करने से वह अभिव्यक्ति सतही रह जाती है, केवल उपचार
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