Changes

Jump to navigation Jump to search
m
no edit summary
Line 16: Line 16:  
   
 
   
 
न कामये तांश्च विनश्यमानान्॥
 
न कामये तांश्च विनश्यमानान्॥
 +
 
सौबलेनैव पापेन दुर्योधनहितैषिणा।
 
सौबलेनैव पापेन दुर्योधनहितैषिणा।
    
क्रूरमाचरितं क्षत्तर्न मे प्रियमनुष्ठितम्॥
 
क्रूरमाचरितं क्षत्तर्न मे प्रियमनुष्ठितम्॥
 +
 
तथैवाङ्गीकृते तव तद्भवान्वक्तुमर्हति।
 
तथैवाङ्गीकृते तव तद्भवान्वक्तुमर्हति।
    
उत्तरं प्राप्तकालं च किमन्यन्मन्यते क्षमम्॥
 
उत्तरं प्राप्तकालं च किमन्यन्मन्यते क्षमम्॥
 +
 
नास्ति धर्मे सहायत्वमिति मे दीर्यते मनः।
 
नास्ति धर्मे सहायत्वमिति मे दीर्यते मनः।
    
यत्र पाण्डुसुतास्सर्वे क्लिश्यन्ति वनमागताः॥
 
यत्र पाण्डुसुतास्सर्वे क्लिश्यन्ति वनमागताः॥
      
विदुर उवाच
 
विदुर उवाच
Line 75: Line 77:  
  यथेच्छकं गच्छ वा तिष्ठ वा त्वं सुसान्त्व्यमानाप्यसती स्त्री जहाति॥ 3-4-20
 
  यथेच्छकं गच्छ वा तिष्ठ वा त्वं सुसान्त्व्यमानाप्यसती स्त्री जहाति॥ 3-4-20
 
  [[:Category:Dhristrashtra's attachment to Duryodhan|''Dhristrashtra's attachment to Duryodhan'']] [[:Category:आसक्ती|''आसक्ती'']]  
 
  [[:Category:Dhristrashtra's attachment to Duryodhan|''Dhristrashtra's attachment to Duryodhan'']] [[:Category:आसक्ती|''आसक्ती'']]  
      
वैशम्पायन उवाच
 
वैशम्पायन उवाच
Line 82: Line 83:  
  नेदमस्तीत्यथ विदुरो भाषमाणः सम्प्राद्रवद्यत्र पार्था बभूवुः॥ 3-4-21
 
  नेदमस्तीत्यथ विदुरो भाषमाणः सम्प्राद्रवद्यत्र पार्था बभूवुः॥ 3-4-21
 
  [[:Category:Dhristrashtra|''Dhristrashtra]] [[:Category:Vidur|''Vidur'']]  
 
  [[:Category:Dhristrashtra|''Dhristrashtra]] [[:Category:Vidur|''Vidur'']]  
  −
      
  इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि अरण्यपर्वणि विदुरवाक्यप्रत्याख्याने चतुर्थोऽध्यायः॥ 4 ॥
 
  इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि अरण्यपर्वणि विदुरवाक्यप्रत्याख्याने चतुर्थोऽध्यायः॥ 4 ॥
40

edits

Navigation menu