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  रो[लो]महर्षणपुत्र उग्रश्रवाः सौतिः पौराणिको।
 
  रो[लो]महर्षणपुत्र उग्रश्रवाः सौतिः पौराणिको।
 
  नैमिषारण्ये शौनकस्य कुलपतेर्द्वादशवार्षिके सत्रे वर्तमाने॥ 1-1-1
 
  नैमिषारण्ये शौनकस्य कुलपतेर्द्वादशवार्षिके सत्रे वर्तमाने॥ 1-1-1
 
  सुखासीनानभ्यगच्छन्महर्षीन्संशितव्रतान्।
 
  सुखासीनानभ्यगच्छन्महर्षीन्संशितव्रतान्।
 
  विनयावनतो भूत्वा कदाचित्सूतनन्दनः॥ 1-1-2
 
  विनयावनतो भूत्वा कदाचित्सूतनन्दनः॥ 1-1-2
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तमाश्रममनुप्राप्तं नैमिशारण्यवासिनाम्।
 
तमाश्रममनुप्राप्तं नैमिशारण्यवासिनाम्।
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  कथिताश्चापि विधिवद्या वैशम्पायनेन वै।
 
  कथिताश्चापि विधिवद्या वैशम्पायनेन वै।
 
  श्रुत्वाहं ता विचित्रार्था महाभारतसंश्रिताः॥ 1-1-11
 
  श्रुत्वाहं ता विचित्रार्था महाभारतसंश्रिताः॥ 1-1-11
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  बहूनि सम्परिक्रम्य तीर्थान्यायतनानि च।
 
  बहूनि सम्परिक्रम्य तीर्थान्यायतनानि च।
 
  श[स]मन्तपञ्चकं नाम पुण्यं द्विजनिषेवितम्॥ 1-1-12
 
  श[स]मन्तपञ्चकं नाम पुण्यं द्विजनिषेवितम्॥ 1-1-12
 
  गतवानस्मि तं देशं युद्धं यत्राभवत्पुरा।
 
  गतवानस्मि तं देशं युद्धं यत्राभवत्पुरा।
 
  पाण्डवानां कुरूणां [कुरूणां पाण्डवानां] च सर्वेषां च महीक्षिताम्॥ 1-1-13
 
  पाण्डवानां कुरूणां [कुरूणां पाण्डवानां] च सर्वेषां च महीक्षिताम्॥ 1-1-13
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  दिदृक्षुरागतस्तस्मात्समीपं भवतामिह।
 
  दिदृक्षुरागतस्तस्मात्समीपं भवतामिह।
 
  आयुष्मन्तः सर्व एव ब्रह्मभूता हि मे मताः॥ 1-1-14
 
  आयुष्मन्तः सर्व एव ब्रह्मभूता हि मे मताः॥ 1-1-14
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  अस्मिन्यज्ञे महाभागाः सूर्यपावकवर्चसः।
 
  अस्मिन्यज्ञे महाभागाः सूर्यपावकवर्चसः।
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  भवन्त आसते[ने] स्वस्था ब्रवीमि किमहं द्विजाः।
 
  भवन्त आसते[ने] स्वस्था ब्रवीमि किमहं द्विजाः।
 
  पुराणसंहिताः पुण्याः कथा धर्मार्थसंश्रिताः॥ 1-1-16
 
  पुराणसंहिताः पुण्याः कथा धर्मार्थसंश्रिताः॥ 1-1-16
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  इति वृत्तं नरेन्द्राणामृषीणां च महात्मनाम्।
 
  इति वृत्तं नरेन्द्राणामृषीणां च महात्मनाम्।
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  थावत्स मुनि[ऋषि]स्तुष्ट्या सत्रे द्वैपायनाज्ञया।
 
  थावत्स मुनि[ऋषि]स्तुष्ट्या सत्रे द्वैपायनाज्ञया।
 
  वेदैश्चतुर्भिः संहितां[संयुक्तां] व्यासस्याद्भुतकर्मणः॥ 1-1-21
 
  वेदैश्चतुर्भिः संहितां[संयुक्तां] व्यासस्याद्भुतकर्मणः॥ 1-1-21
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  संहितां श्रोतुमिच्छामः पुण्यां पापभयापहाम्।
 
  संहितां श्रोतुमिच्छामः पुण्यां पापभयापहाम्।
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  सौतिरुवाच आद्यं पुरुषमीशानं पुरुहूतं पुरुष्टुतम्॥ 1-1-22
 
  सौतिरुवाच आद्यं पुरुषमीशानं पुरुहूतं पुरुष्टुतम्॥ 1-1-22
 
  ऋतमेकाक्षरं ब्रह्म व्यक्ताव्यक्तं सनातनम्।
 
  ऋतमेकाक्षरं ब्रह्म व्यक्ताव्यक्तं सनातनम्।
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  नमस्कृत्य हृषीकेशं चराचरगुरुं हरिम्।
 
  नमस्कृत्य हृषीकेशं चराचरगुरुं हरिम्।
 
  महर्षेः पूजितस्येह सर्वलोकैर्महात्मनः॥ 1-1-25
 
  महर्षेः पूजितस्येह सर्वलोकैर्महात्मनः॥ 1-1-25
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  प्रवक्ष्यामि मतं कृत्स्नं[पुण्यं] व्यासस्यामिततेजसः[व्यासस्याद्भुतकर्मणः]।
 
  प्रवक्ष्यामि मतं कृत्स्नं[पुण्यं] व्यासस्यामिततेजसः[व्यासस्याद्भुतकर्मणः]।
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  ओं नमो भगवते तस्मै व्यासायामिततेजसे॥ 1-1-26
 
  ओं नमो भगवते तस्मै व्यासायामिततेजसे॥ 1-1-26
 
  यस्य प्रसादाद्वक्ष्यामि नारायणकथामिमाम्।
 
  यस्य प्रसादाद्वक्ष्यामि नारायणकथामिमाम्।
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सर्वाश्रमाभिगमनं सर्वतीर्थावगाहनम्॥ 1-1-27
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सर्वाश्रमाभिगमनं सर्वतीर्थावगाहनम्॥ 1-1-27
      
न तथा फलदं लोके नारायणकथा यथा।
 
न तथा फलदं लोके नारायणकथा यथा।
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आचख्युः कवयः केचित्सम्प्रत्याचक्षते परे॥ 1-1-29
 
आचख्युः कवयः केचित्सम्प्रत्याचक्षते परे॥ 1-1-29
   −
आख्यास्यन्ति तथैवान्य[न्ये] इतिहासमिमं भुवि।
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आख्यास्यन्ति तथैवान्य[न्ये] इतिहासमिमं भुवि।
 
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एतद्धि हि[इदं तु] त्रिषु लोकेषु महज्ज्ञानं प्रतिष्ठितम्॥ 1-1-30
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  विस्तरैश्च समासैश्च धार्यते यद्द्विजातिभिः।
 
  विस्तरैश्च समासैश्च धार्यते यद्द्विजातिभिः।
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  अलंकृतं शुभैः शब्दैः समयैर्दिव्यमानुषैः॥ 1-1-31
 
  अलंकृतं शुभैः शब्दैः समयैर्दिव्यमानुषैः॥ 1-1-31
छन्दोवृत्तैश्च विविधैरन्वितं विदुषां प्रियम्।
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@तपसा ब्रह्मचर्येण व्यस्य वेदं सनातनम्।
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तपसा ब्रह्मचर्येण व्यस्य वेदं सनातनम्।
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इतिहासमिमं चक्रे पुण्यं सत्यवतीसुतः॥@
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इतिहासमिमं चक्रे पुण्यं सत्यवतीसुतः॥
    
वेदार्थानां सारभूतमखिलार्थप्रदं ऋणाम्॥ 1-1-32
 
वेदार्थानां सारभूतमखिलार्थप्रदं ऋणाम्॥ 1-1-32
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भारतस्येतिहासस्य धर्मेणान्वीक्ष्य तां गतिम्॥ 1-1-34
 
भारतस्येतिहासस्य धर्मेणान्वीक्ष्य तां गतिम्॥ 1-1-34
   −
प्रविश्य योगं ज्ञानेन सोऽपश्यत्सर्वमन्ततः।
+
प्रविश्य योगं ज्ञानेन सोऽपश्यत्सर्वमन्ततः।
 
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  निष्प्रभेऽस्मिन्निरालोके सर्वतस्तमसावृते॥ 1-1-35
 
  निष्प्रभेऽस्मिन्निरालोके सर्वतस्तमसावृते॥ 1-1-35
बृहदण्डमभूदेकं प्रजानां बीजमव्ययम्।
+
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बृहदण्डमभूदेकं प्रजानां बीजमव्ययम्।
    
युगस्यादौ निमित्तं तन्महद्दिव्यं प्रचक्षते॥ 1-1-36
 
युगस्यादौ निमित्तं तन्महद्दिव्यं प्रचक्षते॥ 1-1-36
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यस्मिन्संश्रूयते सत्यं ज्योतिर्ब्रह्म सनातनम्।
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यस्मिन्संश्रूयते सत्यं ज्योतिर्ब्रह्म सनातनम्।
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अद्भुतं चाप्यजातं[चिन्त्यं] च सर्वत्र समतां गतम्॥ 1-1-37
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अद्भुतं चाप्यजातं[चिन्त्यं] च सर्वत्र समतां गतम्॥ 1-1-37
   
  अव्यक्तं कारणं सूक्ष्मं यत्तत्सदसदात्मकम्।
 
  अव्यक्तं कारणं सूक्ष्मं यत्तत्सदसदात्मकम्।
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  यस्मात्पितामहो जज्ञे प्रभुरेकः प्रजापतिः॥ 1-1-38
 
  यस्मात्पितामहो जज्ञे प्रभुरेकः प्रजापतिः॥ 1-1-38
 
  ब्रह्मा सुरगुरुः स्थाणुर्मनुश्च[नुः] परमेष्ठिजः[ष्ठ्यथ]।
 
  ब्रह्मा सुरगुरुः स्थाणुर्मनुश्च[नुः] परमेष्ठिजः[ष्ठ्यथ]।
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  आपो द्यौः पृथिवी वायुरन्तरिक्षं दिशस्तथा।
 
  आपो द्यौः पृथिवी वायुरन्तरिक्षं दिशस्तथा।
 
  संवत्सरर्तवो मासाः पक्षाहोरात्रयः क्रमात्॥ 1-1-43
 
  संवत्सरर्तवो मासाः पक्षाहोरात्रयः क्रमात्॥ 1-1-43
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  यच्चान्यदपि तत्सर्वं सम्भूतं लोकसंज्ञितम्[साक्षिकम्]।
 
  यच्चान्यदपि तत्सर्वं सम्भूतं लोकसंज्ञितम्[साक्षिकम्]।
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यदिदं दृश्यते किञ्चिद्भूतं स्थावरजङ्गमम्॥ 1-1-44
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  पुनः संक्षिप्यते सर्वं जगत्प्राप्ते युगक्षये।
 
  पुनः संक्षिप्यते सर्वं जगत्प्राप्ते युगक्षये।
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यथर्तावृतुलिङ्गानि नानारूपाणि पर्यये॥ 1-1-45
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यथर्तावृतुलिङ्गानि नानारूपाणि पर्यये॥ 1-1-45
   
  दृश्यन्ते तानि तान्येव तथा भावा युगादिषु।
 
  दृश्यन्ते तानि तान्येव तथा भावा युगादिषु।
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एवमेतदनाद्यन्तं भूतसङ्घात[हार]कारकम्॥ 1-1-46
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एवमेतदनाद्यन्तं भूतसङ्घात[हार]कारकम्॥ 1-1-46
   
  अनादिनिधनं लोके चक्रं सम्परिवर्तते।
 
  अनादिनिधनं लोके चक्रं सम्परिवर्तते।
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  त्रयस्त्रिंशत्सहस्राणि त्रयस्त्रिंशच्छतानि च॥ 1-1-47
 
  त्रयस्त्रिंशत्सहस्राणि त्रयस्त्रिंशच्छतानि च॥ 1-1-47
 
  त्रयस्त्रिंशच्च देवानां सृष्टिः संक्षेपलक्षणा।
 
  त्रयस्त्रिंशच्च देवानां सृष्टिः संक्षेपलक्षणा।
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  धर्मार्थकाम[र्मकामार्थ]युक्तानि शास्त्राणि विविधानि च॥ 1-1-55
 
  धर्मार्थकाम[र्मकामार्थ]युक्तानि शास्त्राणि विविधानि च॥ 1-1-55
 
  लोकयात्राविधानं च सर्वं तद्दृष्टवानृषिः।
 
  लोकयात्राविधानं च सर्वं तद्दृष्टवानृषिः।
  @नीतिर्भरतवंशस्य विस्तारश्चैव सर्वशः।@
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  नीतिर्भरतवंशस्य विस्तारश्चैव सर्वशः।
 
  इतिहासाः सवैयाख्या विविधाः श्रुतयोऽपि च॥ 1-1-56
 
  इतिहासाः सवैयाख्या विविधाः श्रुतयोऽपि च॥ 1-1-56
 
  इह सर्वमनुक्रान्तमुक्तं ग्रन्थस्य लक्षणम्।
 
  इह सर्वमनुक्रान्तमुक्तं ग्रन्थस्य लक्षणम्।
  @संक्षेपेणेतिहासस्य ततो वक्ष्यति विस्तरम्।@
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  संक्षेपेणेतिहासस्य ततो वक्ष्यति विस्तरम्।
 
  विस्तीर्यैतन्महज्ज्ञानमृषिः संक्षिप्य चाब्रवीत्॥ 1-1-57
 
  विस्तीर्यैतन्महज्ज्ञानमृषिः संक्षिप्य चाब्रवीत्॥ 1-1-57
 
  इष्टं हि विदुषां लोके समासव्यासधारणम्।
 
  इष्टं हि विदुषां लोके समासव्यासधारणम्।
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  इतिहासमिमं चक्रे पुण्यं सत्यवतीसुतः।
 
  इतिहासमिमं चक्रे पुण्यं सत्यवतीसुतः।
 
  पराशरात्मजो विद्वान्ब्रह्मर्षिः संशितव्रतः॥ 1-1-61
 
  पराशरात्मजो विद्वान्ब्रह्मर्षिः संशितव्रतः॥ 1-1-61
  @मातुर्नियोगाद्धर्मात्मा गाङ्गेयस्य च धीमतः॥
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  मातुर्नियोगाद्धर्मात्मा गाङ्गेयस्य च धीमतः॥
 
  क्षेत्रे विचित्रवीर्यस्य कृष्णद्वैपायनः पुरा।
 
  क्षेत्रे विचित्रवीर्यस्य कृष्णद्वैपायनः पुरा।
 
  त्रीनग्नीनिव कौरव्याञ्जनयामास वीर्यवान्॥
 
  त्रीनग्नीनिव कौरव्याञ्जनयामास वीर्यवान्॥
Line 254: Line 201:  
  चतुर्विंशतिसाहस्रं चक्रे भारत संज्ञितम्।
 
  चतुर्विंशतिसाहस्रं चक्रे भारत संज्ञितम्।
 
  उपाख्यानै र्विना तावद्भारतं प्रोच्यते बुधैः॥
 
  उपाख्यानै र्विना तावद्भारतं प्रोच्यते बुधैः॥
  ततोऽप्यर्धशतं भूयः संक्षेपं कृतवानृषिः।@
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  ततोऽप्यर्धशतं भूयः संक्षेपं कृतवानृषिः।
 
  तस्याभ्यासवरिष्ठस्य कृष्णद्वैपायनः प्रभुः।
 
  तस्याभ्यासवरिष्ठस्य कृष्णद्वैपायनः प्रभुः।
 
  कथमध्यापयानीह स शिष्यान्नित्यचिन्तयत्॥ 1-1-62
 
  कथमध्यापयानीह स शिष्यान्नित्यचिन्तयत्॥ 1-1-62
Line 261: Line 208:  
  प्रीत्यर्थं तस्य चैवर्षेर्लोकानां हितकाम्यया।
 
  प्रीत्यर्थं तस्य चैवर्षेर्लोकानां हितकाम्यया।
 
  तं दृष्ट्वा विस्मितो भूत्वा प्राञ्जलिः प्रणतः स्थितः॥ 1-1-64
 
  तं दृष्ट्वा विस्मितो भूत्वा प्राञ्जलिः प्रणतः स्थितः॥ 1-1-64
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  आसनं कल्पयामास सर्वैर्देवगणैर्वृतः[सर्वैर्मुनिगणैर्वृतः]।
 
  आसनं कल्पयामास सर्वैर्देवगणैर्वृतः[सर्वैर्मुनिगणैर्वृतः]।
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  हिरण्यगर्भमासीनं तस्मिंस्तु परमासने॥ 1-1-65
 
  हिरण्यगर्भमासीनं तस्मिंस्तु परमासने॥ 1-1-65
 
  परिवृत्यासनाभ्याशे वासवेयः स्थितोऽभवत्।
 
  परिवृत्यासनाभ्याशे वासवेयः स्थितोऽभवत्।
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  वाक्यजातिविशेषाश्च लोकयात्राक्रमश्च यः।
 
  वाक्यजातिविशेषाश्च लोकयात्राक्रमश्च यः।
 
  यच्चापि सर्वगं वस्तु तच्चैव प्रतिपादितम्॥ 1-1-76
 
  यच्चापि सर्वगं वस्तु तच्चैव प्रतिपादितम्॥ 1-1-76
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  परं न लेखकः कश्चिदेतस्य भुवि विद्यते।
 
  परं न लेखकः कश्चिदेतस्य भुवि विद्यते।
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  ब्रह्मोवाच तपोविशिष्टादपि वै वशिष्ठान्मु[विशिष्टान्मु]निसंचयात्॥ 1-1-77
 
  ब्रह्मोवाच तपोविशिष्टादपि वै वशिष्ठान्मु[विशिष्टान्मु]निसंचयात्॥ 1-1-77
 
  मन्ये श्रेष्ठतरं त्वां वै रहस्यज्ञानवेदनात्।
 
  मन्ये श्रेष्ठतरं त्वां वै रहस्यज्ञानवेदनात्।
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  त्वया च काव्यमित्युक्तं तस्मात्काव्यं भविष्यति।
 
  त्वया च काव्यमित्युक्तं तस्मात्काव्यं भविष्यति।
 
  अस्य काव्यस्य कवयो न समर्था विशेषणे॥ 1-1-79
 
  अस्य काव्यस्य कवयो न समर्था विशेषणे॥ 1-1-79
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  विशेषणे गृहस्थस्य शेषास्त्रय इवाश्रमाः।
 
  विशेषणे गृहस्थस्य शेषास्त्रय इवाश्रमाः।
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  काव्यस्य लेखनार्थाय गणेशः स्मर्यतां मुने॥ 1-1-80
 
  काव्यस्य लेखनार्थाय गणेशः स्मर्यतां मुने॥ 1-1-80
 
  सौतिरुवाच एवमाभाष्य तं ब्रह्मा जगाम स्वं निवेशनम्।
 
  सौतिरुवाच एवमाभाष्य तं ब्रह्मा जगाम स्वं निवेशनम्।
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  यदि ज्ञानहुताशेन सम्यङ्नोज्ज्वलितं भवेत्।
 
  यदि ज्ञानहुताशेन सम्यङ्नोज्ज्वलितं भवेत्।
 
  तमसान्धस्य लोकस्य वेष्टितस्य स्वकर्मभिः॥ 1-1-91
 
  तमसान्धस्य लोकस्य वेष्टितस्य स्वकर्मभिः॥ 1-1-91
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  ज्ञानाञ्जनशलाकाभिः बुद्धिनेत्रोत्सवः कृतः।
 
  ज्ञानाञ्जनशलाकाभिः बुद्धिनेत्रोत्सवः कृतः।
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  (अज्ञानतिमिरान्धस्य लोकस्य तु विचेष्टतः।
 
  (अज्ञानतिमिरान्धस्य लोकस्य तु विचेष्टतः।
 
  ज्ञानाञ्जनशलाकाभिर्नेत्रोन्मीलनकारकम्॥)
 
  ज्ञानाञ्जनशलाकाभिर्नेत्रोन्मीलनकारकम्॥)
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  सर्वेषां कविमुख्यानामुपजीव्यो भविष्यति॥ 1-1-99
 
  सर्वेषां कविमुख्यानामुपजीव्यो भविष्यति॥ 1-1-99
 
  पर्जन्य इव भूतानामाश्र[मक्ष]यो भारतद्रुमः।
 
  पर्जन्य इव भूतानामाश्र[मक्ष]यो भारतद्रुमः।
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  सौतिरुवाच एवमाभाष्यं तं ब्रह्मा जगाम स्वं निवेशनम्।
 
  सौतिरुवाच एवमाभाष्यं तं ब्रह्मा जगाम स्वं निवेशनम्।
  भगवान्स जगत्स्रष्टा ऋषिर्देवगणैस्सह॥@
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  भगवान्स जगत्स्रष्टा ऋषिर्देवगणैस्सह॥
 
  तस्य वृक्षस्य वक्ष्यामि शाखापु[शश्वत्पु]ष्पफलोदयम्॥ 1-1-100
 
  तस्य वृक्षस्य वक्ष्यामि शाखापु[शश्वत्पु]ष्पफलोदयम्॥ 1-1-100
 
  स्वादुमेध्यरसोपेतमच्छेद्यममरैरपि।
 
  स्वादुमेध्यरसोपेतमच्छेद्यममरैरपि।
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  ससदस्यैः सहासीनः श्रावयामास भारतम्।
 
  ससदस्यैः सहासीनः श्रावयामास भारतम्।
 
  कर्मान्तरेषु यज्ञस्य चोद्यमानः पुनः पुनः॥ 1-1-106
 
  कर्मान्तरेषु यज्ञस्य चोद्यमानः पुनः पुनः॥ 1-1-106
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  विस्तरं कुरुवंशस्य गान्धार्या धर्मशीलताम्।
 
  विस्तरं कुरुवंशस्य गान्धार्या धर्मशीलताम्।
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  ततोऽप्यर्धशतं भूयः संक्षेपं कृतवानृषिः।
 
  ततोऽप्यर्धशतं भूयः संक्षेपं कृतवानृषिः।
 
  अनुक्रमणिकाध्यायं वृत्तानां[न्तं] सर्वपर्वणाम्॥ 1-1-111
 
  अनुक्रमणिकाध्यायं वृत्तानां[न्तं] सर्वपर्वणाम्॥ 1-1-111
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  इदं द्वैपायनः पूर्वं पुत्रमध्यापयच्छुकम्।
 
  इदं द्वैपायनः पूर्वं पुत्रमध्यापयच्छुकम्।
 
  ततोऽन्येभ्योऽनुरूपेभ्यः शिष्येभ्यः प्रददौ विभुः॥ 1-1-112
 
  ततोऽन्येभ्योऽनुरूपेभ्यः शिष्येभ्यः प्रददौ विभुः॥ 1-1-112
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  षष्टिं शतसहस्राणि चकारान्यां स संहिताम्।
 
  षष्टिं शतसहस्राणि चकारान्यां स संहिताम्।
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  त्रिंशच्छतसहस्रं च देवलोके प्रतिष्ठितम्॥ 1-1-113
 
  त्रिंशच्छतसहस्रं च देवलोके प्रतिष्ठितम्॥ 1-1-113
 
  पित्र्ये पञ्चदश प्रोक्तं गन्धर्वेषु चतुर्दश।
 
  पित्र्ये पञ्चदश प्रोक्तं गन्धर्वेषु चतुर्दश।
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  वैशम्पायनविप्रर्षिः श्रावयामास पार्थिवम्।
 
  वैशम्पायनविप्रर्षिः श्रावयामास पार्थिवम्।
 
  पारिक्षितं महाबाहुं नाम्ना तु जनमेजयम्॥)
 
  पारिक्षितं महाबाहुं नाम्ना तु जनमेजयम्॥)
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  दुर्योधनो मन्युमयो महाद्रुमः स्कन्धः कर्णः शकुनिस्तस्य शाखाः।
 
  दुर्योधनो मन्युमयो महाद्रुमः स्कन्धः कर्णः शकुनिस्तस्य शाखाः।
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  दुःशासनः पुष्पफले समृद्धे मूलं राजा धृतराष्ट्रोऽमनीषी॥ 1-1-116
 
  दुःशासनः पुष्पफले समृद्धे मूलं राजा धृतराष्ट्रोऽमनीषी॥ 1-1-116
 
  युधिष्ठिरो धर्ममयो महाद्रुमः स्कन्धोऽर्जुनो भीमसेनोऽस्य शाखाः।
 
  युधिष्ठिरो धर्ममयो महाद्रुमः स्कन्धोऽर्जुनो भीमसेनोऽस्य शाखाः।
 
  माद्रीसुतौ पुष्पफले समृद्धे मूलं कृष्णो ब्रह्म च ब्राह्मणाश्च॥ 1-1-117
 
  माद्रीसुतौ पुष्पफले समृद्धे मूलं कृष्णो ब्रह्म च ब्राह्मणाश्च॥ 1-1-117
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  पाण्डुर्जित्वा बहून्देशान्बुद्ध्या विक्रमणेन च।
 
  पाण्डुर्जित्वा बहून्देशान्बुद्ध्या विक्रमणेन च।
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  अरण्ये मृगयाशीलो न्यवसन्मुनिभिः सह॥ 1-1-118
 
  अरण्ये मृगयाशीलो न्यवसन्मुनिभिः सह॥ 1-1-118
 
  मृगव्यवायनिधनात्कृच्छ्रां प्राप स आपदम्।
 
  मृगव्यवायनिधनात्कृच्छ्रां प्राप स आपदम्।
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  धर्मानिलेन्द्रान्स्तुतिभिर्जुहाव सुतवाञ्छया।
 
  धर्मानिलेन्द्रान्स्तुतिभिर्जुहाव सुतवाञ्छया।
 
  तद्दत्तोपनिषन्माद्री चाश्विनावाजुहाव च।)
 
  तद्दत्तोपनिषन्माद्री चाश्विनावाजुहाव च।)
  @जाताः पार्थास्ततः कामी पाण्डुर्माद्र्या दिवं गतः।@
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  जाताः पार्थास्ततः कामी पाण्डुर्माद्र्या दिवं गतः।
 
  तापसैः सह संवृद्धा मातृभ्यां परिरक्षिताः॥ 1-1-121
 
  तापसैः सह संवृद्धा मातृभ्यां परिरक्षिताः॥ 1-1-121
 
  मेध्यारण्येषु पुण्येषु महतामाश्रमेषु च।
 
  मेध्यारण्येषु पुण्येषु महतामाश्रमेषु च।
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  मृतः पाण्डुर्महापुण्ये शतशृङ्गे महागिरौ॥)
 
  मृतः पाण्डुर्महापुण्ये शतशृङ्गे महागिरौ॥)
 
  मुनिभिश्च समानीता[ऋषिभिर्यत्तदाऽऽनीता] धार्तराष्ट्रान्प्रति स्वयम्॥ 1-1-122
 
  मुनिभिश्च समानीता[ऋषिभिर्यत्तदाऽऽनीता] धार्तराष्ट्रान्प्रति स्वयम्॥ 1-1-122
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  शिशवश्चाभिरूपाश्च जटिला ब्रह्मचारिणः।
 
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  पुत्राश्च भ्रातरश्चेमे शिष्याश्च सुहृदश्च वः॥ 1-1-123
 
  पुत्राश्च भ्रातरश्चेमे शिष्याश्च सुहृदश्च वः॥ 1-1-123
 
  पाण्डवा एत इत्युक्त्वा मुनयोऽन्तर्हितास्ततः।
 
  पाण्डवा एत इत्युक्त्वा मुनयोऽन्तर्हितास्ततः।
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  धृत्या च भीमसेनस्य विक्रमेणार्जुनस्य च।
 
  धृत्या च भीमसेनस्य विक्रमेणार्जुनस्य च।
 
  गुरुशुश्रूषया कु[क्षा]न्त्या यमयोर्विनयेन च॥ 1-1-132
 
  गुरुशुश्रूषया कु[क्षा]न्त्या यमयोर्विनयेन च॥ 1-1-132
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  तुतोष लोकः सकलस्तेषां शौर्यगुणेन च।
 
  तुतोष लोकः सकलस्तेषां शौर्यगुणेन च।
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  प्राप्तवानर्जुनः कृष्णां कृत्वा कर्म सुदुष्करम्।
 
  प्राप्तवानर्जुनः कृष्णां कृत्वा कर्म सुदुष्करम्।
 
  ततः प्रभृति लोकेऽस्मिन्पूज्यः सर्वधनुष्मताम्॥ 1-1-134
 
  ततः प्रभृति लोकेऽस्मिन्पूज्यः सर्वधनुष्मताम्॥ 1-1-134
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  आदित्य इव दुष्प्रेक्ष्यः समरेष्वपि चाभवत्।
 
  आदित्य इव दुष्प्रेक्ष्यः समरेष्वपि चाभवत्।
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  ससर्वान्पार्थिवान्जित्वा सर्वांश्च महतो गणान्॥ 1-1-135
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आजहारार्जुनो राज्ञे राजसूयं महाक्रतुम्।
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अन्नवान्दक्षिणावांश्च सर्वैः समुदितो गुणैः॥ 1-1-136
 
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युधिष्ठिरेण सम्प्राप्तो राजसूयो महाक्रतुः।
 
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सुनयाद्वासुदेवस्य भीमार्जुनबलेन च॥ 1-1-137
ससर्वान्पार्थिवान्जित्वा सर्वांश्च महतो गणान्॥ 1-1-135
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घातयित्वा जरासन्धं चैद्यं च बलगर्वितम्।
आजहारार्जुनो राज्ञे राजसूयं महाक्रतुम्।
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दुर्योधनं समागच्छन्नर्हणानि ततस्ततः॥ 1-1-138
अन्नवान्दक्षिणावांश्च सर्वैः समुदितो गुणैः॥ 1-1-136
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मणिकाञ्चनरत्नानि गोहस्त्यश्वरथानि च।
युधिष्ठिरेण सम्प्राप्तो राजसूयो महाक्रतुः।
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विचित्राणि च वासांसि प्रावारावरणानि च॥ 1-1-139
सुनयाद्वासुदेवस्य भीमार्जुनबलेन च॥ 1-1-137
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कम्बलाजिनरत्नानि राङ्कवास्तरणानि च।
घातयित्वा जरासन्धं चैद्यं च बलगर्वितम्।
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दुर्योधनं समागच्छन्नर्हणानि ततस्ततः॥ 1-1-138
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मणिकाञ्चनरत्नानि गोहस्त्यश्वरथानि च।
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विचित्राणि च वासांसि प्रावारावरणानि च॥ 1-1-139
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कम्बलाजिनरत्नानि राङ्कवास्तरणानि च।
   
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अग्निं तथा तर्पितं खाण्डवे च तदा नाशंसे विजयाय संजय॥ 1-1-158
 
अग्निं तथा तर्पितं खाण्डवे च तदा नाशंसे विजयाय संजय॥ 1-1-158
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@यदाश्रौषं पुनरामन्त्र्य द्यूते महात्मनां प्रस्थितानां वनाय।
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यदाश्रौषं पुनरामन्त्र्य द्यूते महात्मनां प्रस्थितानां वनाय।
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ज्येष्ठप्रीत्या क्लिश्यतां पाण्डवानां तदा नाशंसे विजयाय संजय॥@
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ज्येष्ठप्रीत्या क्लिश्यतां पाण्डवानां तदा नाशंसे विजयाय संजय॥
    
यदाश्रौषं जातुषाद्वेश्मनस्तान्मुक्तान्पार्थान्पञ्च कुन्त्या समेतान्।
 
यदाश्रौषं जातुषाद्वेश्मनस्तान्मुक्तान्पार्थान्पञ्च कुन्त्या समेतान्।
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अधीयानं शंसितं सत्यसन्धं तदा नाशंसे विजयाय संजय॥ 1-1-169
 
अधीयानं शंसितं सत्यसन्धं तदा नाशंसे विजयाय संजय॥ 1-1-169
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@यदाश्रौषं तीर्थयात्रानिवृत्तं पाण्डोस्सुतं सहितं रोमशेन।
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यदाश्रौषं तीर्थयात्रानिवृत्तं पाण्डोस्सुतं सहितं रोमशेन।
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तस्मादश्रौषीदर्जुनस्यार्थलाभं तदा नाशंसे विजयाय संजय॥@
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तस्मादश्रौषीदर्जुनस्यार्थलाभं तदा नाशंसे विजयाय संजय॥
    
यदाश्रौषं कालकेयाः ततस्ते पौलोमानो वरदानाच्च दृप्ताः।
 
यदाश्रौषं कालकेयाः ततस्ते पौलोमानो वरदानाच्च दृप्ताः।
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विराटराष्ट्रे सह कृष्णया च तदा नाशंसे विजयाय संजय॥ 1-1-175
 
विराटराष्ट्रे सह कृष्णया च तदा नाशंसे विजयाय संजय॥ 1-1-175
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@यदाश्रौषं तान्यथाऽज्ञातवासेऽज्ञायमानान्मामकानां सकाशे।
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यदाश्रौषं तान्यथाऽज्ञातवासेऽज्ञायमानान्मामकानां सकाशे।
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दक्षान्पार्थान्चरितश्चाग्निकल्पां स्तदा नाशंसे विजयाय संजय॥@
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दक्षान्पार्थान्चरितश्चाग्निकल्पां स्तदा नाशंसे विजयाय संजय॥
    
(यदाश्रौषं कीचकानां वरिष्ठं निषूदितं भ्रातृशतेन सार्धम्।
 
(यदाश्रौषं कीचकानां वरिष्ठं निषूदितं भ्रातृशतेन सार्धम्।
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